आखर री औकात, पृष्ठ- 43

हरख सूंपी
थांरै हाथां ताकत
अबै रोवां म्हे
०००

रोसणी सोधो
आगै बधो- भींत है
भाट्ठा उठावो
०००

जठै जावता
फूल हा काल, आज-
गाळ्‌यां’र जूता
०००

हाथी रै होदै
घूमता गळी-गळू
आज उपाळा
०००

जूतां रो दाब
कांईं करता और
सिलाम सा’ब !
०००

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