आखर री औकात, पृष्ठ- 10

हियै उजास
कवितावां री बात
हार्‌यां रा हाथ
०००

रात रोयी तो
आंख नै आंसूं दीधा
फूलां नै मोती
०००

दीठ चान्दणो
लखावै देह रूड़ी
नहीं अकूड़ी
०००

बुझै ना मिटै
जुगां सूं जगां अठै
जोत अखण्ड
०००

मिनख कांईं
माळी पन्ना चेपां तो
भाट्ठा पूजीजै
०००

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें