आखर री औकात, पृष्ठ- 14

भायां में ओपां
ओप दियां पैली थे
उतारो गाभां
०००

सांस अटकै
कुण जाणै आ पीड़
सांस जलमै
०००

सूरज चांद
लखावै म्हनै रोटी
-दीठ है खोटी !
०००

सिकती रोटी
रूळग्या मुसाफिर
चीकणी बोटी
०००

हा तो घणाई
आकरै तावड़ै म्हैं
आज एकलो
०००

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