राजस्थानी साहित्य में हाईकू एक काव्य-प्रयोग है, जिसके जनक श्री सांवर दइया माने जाते हैं। समकालीन कविता में यह प्रयोग आज एक काव्य-धारा के रूप में देखा जा सकता है। यहां संपूर्ण पुस्तक आपके लिए उपलब्ध है।
आखर री औकात, पृष्ठ- 28
पाणी लाधै तो
बीज सुळबुळावै
जड़ां पकड़ै
०००
एढै-टाकड़ै
देखा देखी मुळकूं
मन उदास
०००
रोसणी सोधी
मिल’र आया पाछा
अंधारो ओढ
०००
भूतां नै नूंतै
भूवाजी इत्ता भोळा
कद सूं व्हैग्या
०००
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