आखर री औकात, पृष्ठ- 48

काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००

दवा लो घणी
ताव उतर्‌यो कोनी
बैद बदळां
०००

रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००

हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००

नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००

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