आखर री औकात, पृष्ठ- 50

रुखाळी नांवै
उजास री आड़ थे
करो अंधारा
०००

म्है’र रै नांव
सरै आम करो थे
जी रा जेवड़ा
०००

हरखै जग
काळै जाळां नै काट
ऊग्यो सूरज
०००

आभो र हवा
कैद कर बै पूछै-
उड़ो क्यूं कोनी ?
०००

राज री रीत
मुळकण रो कैवै
मुक्का मार’र
०००

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